...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Thursday, December 24, 2009

अक्सर खेलती है वह आंख-मिचौली


आकाश में खिला चांद
जब झांक आया मेरे कमरे में कल रात
तो मुझे उसकी याद हो आई

...मेरे ख़्यालों के दरवाजे पर कब से दस्तक दे रही है वह

जो अंदर तो आना चाहती है बहुत
पर पांव ठिठक जाते हैं

वह..

जो कहना तो बहुत कुछ चाहती है
मगर लब कांप कर रह जाते हैं।

सुमित सिंह, मुम्बई

1 comment:

विनोद कुमार पांडेय said...

चाँद इंसानों से डरता है शायद इसलिए हो कुछ ऐसा..बढ़िया अभिव्यक्ति..बधाई..