...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Tuesday, May 27, 2008

राष्ट्रपति महोदया! इस बंदूक ने सैकड़ों जानें ली हैं


आज की ताजा ख़बर! भारत की राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रतिभा देवी पाटिल आतंकवादियों से जब्त एक बंदूक पाकर काफ़ी खुश हुईं। बंदूक देखकर उन्हें अपने पचपन की याद आ गई। बंदूक से निकलती गोलियों के एहसास मात्र से वे काफ़ी रोमांचित हो उठीं. चोर-सिपाही का खेल खेलने के लिए उनका दिल मचल उठा. चौंकिए मत यह हम नहीं कहते साथ की यह तस्वीर (तस्वीर: टाइम्स ऑफ इन्डिया, २४ मई २००८ )बयान करती है.ये हैं हमारे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन अधिकारी की बिंदास मानसिकता की तल्ख़ तस्वीर.राष्ट्रपति महोदया लगता है एक पल को आप यह भूल गए हैं किी आपके हाथ में जो मशीनगन है उसने कई सारी मासूम जिंदगी छीनी है, उसे मौत में तब्दील किया है. राष्ट्रपति महोदया ज़रा संभलिए.यह हथियार उन आतंकवादियों से छीना गया है जिनके नाम से गिरी हुई लाशें और भागते तड्पते अधजले लोगों की खौफनाक तस्वीर उभर आती है.यह आतंकवाद का हथियार है ना की खिलौने वाली बंदूक. महोदया शायद आपको इल्म नहीं किी आपने इस देश में आतंकवाद के शिकार हर इंसान की भावना को चोट पहुँचाया है.सुमित सिंह, मुंबई