अपना अपना आसमां
...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़
‘
पाश
’
Tuesday, March 24, 2009
शहर के बाहर आ घिरी सांझ
आसमान पर पसर गई
गहराती सांझ की सिंदूरी चादर
आखिरी उड़ान भर
बसेरों को लौट रही हैं चिड़ियाँ
पेड़-पत्तियों की कंपकंपाहट थम गई
दिन के सरहद को लांगता सूरज
शहर के पीछे झुक रहा है
धीरे-धीरे
प्रियतम से मिलने का वक्त शहर की स्मृति में कहीं दर्ज नहीं होता...।
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