...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Sunday, March 7, 2010

इक प्यारी-सी खामोशी


एक ख़ामोशी जो हमारे बीच कई-कई दिनों तक तन जाती है
एक अनकही बात जिसे तुम कहते-कहते रुक जाती हो
एक टीसभरा लम्हा जो तुम्हें रोज-रोज निचोड़ जाता है
दिल पर पड़ा एक खरोंच जब ताजमहल बुन जाता है
...तुम्हारे लौट आने की उम्मीद के सहारे मैं एक सैलाब से बचकर निकल आता हूं

मगर कब तक बचता रहूंगा?
एक बेचैनी सी बनी रहती है कि इस रात के बाद शायद उजाला न दिखे
पल-पल सूखते वक्त के साये में इक दिन शायद सब कुछ चुक जाए
एक किस्सा है...शायद अधूरा रह जाए...।

-सुमित सिंह,पटना