...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Wednesday, November 25, 2009

उसकी आंखों में बसा एक लंबा इंतजार है


वे गर्मियों के दिन थे जब पहली बार लड़के ने पूछा- “कैसी दिखती हो तुम?”
एक छोटी चुप्पी के बाद उसने कहा- “अच्छी नहीं”
इसके बाद उसने फोन रख दिया

फिर सावन आया
खूब हुई बारिश
शहर का पोर-पोर,कतरा-कतरा भींग उठा
उन्हीं दिनों लड़के के दिल में एक नीली झील उतरी
पानी के बदलते रंगों के बीच
लड़के ने लिखी एक खूबसूरत कविता
उसने उसे देखा नहीं था अबतक
पर उसकी कविता में वह तितलियों सी उड़ रही थी
कविता उसने इंटरनेट पर डाली
और झिझकते-सहमते लिंक उसे मेल कर दिया
अगले दिन उसने फोन किया
क्या कहा लड़की को पता नहीं
क्या सुना लड़के को पता नहीं
दोनों के ख्यालों में उड़ रहे थे बस कविता के महंकते शब्द

एक शाम लड़के ने पाया उसकी झील का रंग और गहरा हो चला था

मंदिर में जलते दिये से
गहरा नाता था उसका
दीवाली की रोशनियों के बीच वह किसी का इंतजार करने लगा
हर एसएमएस की बीप पर
झपटकर अपना सेल उठा लेता...
रात गहराकर ढलने लगी
लड़के का इंतजार थमने लगा
आखिरी दीप के बुझने के बाद वह उदास हो उठा
उसने कमरे की खिड़की बंद कर दी
खिड़की पहाड़ पर खुलती थी
पहाड़ की हवा आनी बंद हो गई...

कई दिनों के बाद उसका फोन आया
कुछ पल चुप रही फिर ‘सॉरी’ कहा
लड़के को दीवाली की वह बेचैन रात याद आ गई
फिर दोनों से फोन रख दिए

कई महीने बाद
लड़ने ने कह डालने का फ़ैसला किया
हिम्मत जुटाई और कह डाला- ‘तुम अच्छी लगती हो मुझे... प्यार करता हूं तुमसे’
लड़की चुप रही... लड़के ने फिर कहा
लड़की कुछ नहीं बोली...
फोन पर बस उसकी खामोशी सुनाई देती रही
लड़के की आंखों में नमी उतर आई

...“प्रेम इंतजार भी तो है”
कहकर उसने फोन रख दिया

लड़के की झील में अब इंतजार का रंग उतर आया है...।

सुमित सिंह,मुम्बई