...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Wednesday, October 22, 2008

राज, रेलवे और चयन प्रक्रिया में सुधार


महाराष्ट्र की ताजा घटनाओं से केंद्र सरकार को तुरंत कम से कम एक सीख तो जरूर लेनी चाहिए कि केंद्रीय प्रतिष्ठानों में भर्ती की क्षेत्रवाद या राज्यवार प्रक्रिया चलाना कहीं न कहीं भारत की संघीय भावना को कमजोर करने वाला कदम साबित हुआ है।

केंद्रीय एजेंसियों में खाली पदों में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन देशव्यापी केंद्रों पर होना चाहिए। फिर विभिन्न केंद्रों पर चयनित उम्मीदवारों को जहाँ जिस क्षेत्र या राज्य में जरूरत हो वहाँ उन्हें नियुक्त किया जाए। यह व्यवस्था जहाँ एक तरफ परीक्षाओं के लिए लंबी यात्रा की असुविधा से छात्रों को निजात दिलाएगी वहीं भारत संघ के भीतर क्षेत्रवाद की संकुचित और राष्ट्रीय एकता विरोधी भावना को बेवजह भड़कने से रोका जा सकता है।

इस व्यवस्था से किसी एक राज्य या क्षेत्र को ऐसा नहीं लगेगा कि उनके यहां कि रिक्तियों को देश के दूसरे हिस्से के उम्मीदवार हड़प ले जा रहे हैं। यूपीएससी की परीक्षाओं एवं चयन व्यवस्था रेलवे तथा बैंकिंग जैसी देशव्यापी एजेंसियों के लिए मिसाल होनी चाहिए।

सूरज प्रकाश

1 comment:

Unknown said...

बिहार के लोगों को यदि बिहार में ही पोस्टिंग दी जायेगी तो फ़िर बिहारी लोग, जो टिकट नहीं लेते हैं, रिजर्वेशन कोच में कब्जा कर लेते हैं, रेल्वे के ठेके हथिया लेते हैं उनकी तो मजा ही मजा… जय लालू राज, आओ हम सब मिलकर देश को बिहार बनायें… मेरा बिहार महान… जहाँ की शहाबुद्दीन संतान…