पागल होने से पहले
आख़िरी बार रोते हुए आदमी को देखकर
किसी की रूह नहीं कांपती
कोई नहीं सोचता कि यह आदमी अब कभी अपने घर नहीं लौट पाएगा
कभी इसके सपनों में चिड़ियों से भरा आसमान नहीं टंकेगा
कभी वह अपनी पहचान नहीं खोल पाएगा
शहर के कुत्ते
देर तक उसे शक की निगाह से देखकर भौंकते रहेंगे...
कोई नहीं डरता उसे देखकर
कोई नहीं डरता यह सोचकर
कि पागल होते आदमी की ख़ामोशी जब शोर बनकर निगलेगी समूचे शहर को
तो हर कोई एक-दूसरे से ख़फ़ा दिखेगा...।
सुमित सिंह
6 comments:
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
कोई नहीं डरता उसे देखकर
कोई नहीं डरता यह सोचकर
कि पागल होते आदमी की ख़ामोशी जब शोर बनकर निगलेगी समूचे शहर को
तो हर कोई एक-दूसरे से ख़फ़ा दिखेगा...।
" very very emotional creation'
regards
कोई नहीं डरता उसे देखकर
कोई नहीं डरता यह सोचकर
कि पागल होते आदमी की ख़ामोशी जब शोर बनकर निगलेगी समूचे शहर को
तो हर कोई एक-दूसरे से ख़फ़ा दिखेगा...।
bahut khoob sumit, bahut umda, sach mein bahut gehra arth chodti aapki baat
mehsuus hoti panktiyan/bhaav
dil ko chune wali
बहुत अच्छी तहरीर है... हमारे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया...
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