...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Thursday, June 3, 2010

उत्तर भारतीयों की लंपटता के सबब

पिछ्ले दिनों मुम्बई और महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में ‘उत्तर भारतीयता’ एक मुद्दे के रूप में उभरा। इस मुद्दे पर कुछ राजनैतिक गिरोहों को अपनी लंपटता और हिंसा प्रदर्शित करने का भरपूर मौका मिला तो बुद्धिजीवियों ने इस बहस को भांति-भांति से विस्तार दिया। यहां पेश है इसी मुद्दे पर युवा लेखक और विचारक सूरज प्रकाश सिंह की सीधी-सच्ची राय। चूंकि वे खुद उत्तर भारत से हैं और वहां के समाज और मनोदशा पर पैनी नज़र रखते हैं, इसलिए उनके ये विचार आपको सच्चाई से रूबरू कराते हैं...।
-सुमित सिंह



जो सोचते नहीं वे पढ़ते नहीं। उत्तर भारतीयों का बहुसंख्यक तबका विचारहीनता से ग्रस्त है। उनकी बात छोड़िए जिनकी सारी उम्र गरीबी झेलते और उससे लड़ते बीत जाती है, मेरा इशारा उनकी ओर है जो खाते-पीते लोग जनसंख्या के ऊपरी 5% वाली परत से आते हैं (जिनके बारे में अभी हाल में एक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी का अध्ययन है, कि उनकी आय रोजाना 10 डॉलर यानि 15 हजार रू. मासिक से अधिक है)। इस तबके में (जाहिर है जिनके पास किताबें खरीदने और पढ़ने की सहूलियत है), कितने ऐसे घर आपको मिलेंगे जहां बैठकखाने में एक बुकशेल्फ हो ?
इसी उत्तर भारतीय क्षेत्र में भ्रष्टाचार, लंपटता, बेईमानी, झूठ और उद्दंडता की भरी-पूरी गंगा बहती है। उत्तर भारत के किसी गांव-शहर में रहने वाले आप एक विचारशील व्यक्ति हैं, लेकिन यदि आपका संपर्क भारत के अन्य हिस्सों से नहीं हुआ है तो शायद आप इस तथ्य को साफ-साफ नहीं समझ पाएंगे। जैसे ही आप यहां से बाहर निकलते हैं और नए लोगों के संपर्क में आते हैं आपको पहली ही बार में फर्क स्पष्ट महसूस होता है। भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता जिस तरह उत्तर भारतीय हिन्दी क्षेत्र की अपसंस्कृति का हिस्सा बन गई हैं, वह चरम की स्थिति है। ऐसा शायद और कहीं नहीं। आप ट्रेन में बैठकर उत्तर भारत से मध्य या दक्षिण भारत की यात्रा कर लें, ट्रेन के आपके सहयात्री या रास्ते के स्टेशनों पर चढ़ने-उतरने वाले लोगों, खासकर नौजवानों के बर्ताव से ही आप बहुत कुछ अनुभव कर लेंगे।

यह विचारहीनता की स्थिति उत्तर भारतीय हिन्दी क्षेत्र में इस कारण पैदा हुई, क्योंकि यहां समाज के अग्रणी वर्ग के लोगों ने समाज के शेष हिस्से के साथ उनकी मिहनत के फल को लूटकर खाने भर का अपना रिश्ता समझा। देश भर के विभिन्न समाजों पर नजर डालिए- दलितों और महिलाओं का ऐसा बुरा हाल आप कहीं नहीं पाएंगे। हिंदी क्षेत्र का समाज असल में इन्हीं दो वर्गों में बंटा हुआ समाज है— अग्रणी प्रभुवर्ग और शेष वंचित वर्ग। कमोबेश दोनों ही वर्ग विचाराशून्य हैं। पहला तबका इस कारण, क्योंकि उसने अपने से कमजोरों का हिस्सा हड़पने को अपनी संस्कृति का स्थाई हिस्सा बना लिया। दूसरा तबका इस कारण, कि उसने पहले तबके की संस्कृति की जड़ में बिना आवाज किए पड़े रहकर उसका पोषण करना स्वीकार कर लिया। दोनों ने ही अपने को मानवीय गरिमा की वास्तविक स्थिति से नीचे गिर जाने दिया।

कभी कहीं पढ़ा था कि पुस्तक मेले में सबसे अधिक किताबें पटना पुस्तक मेले में बिकती हैं, लेकिन इस बारे में मेरा अनुभव यह है कि यहां अधिकतर हल्की-फुल्की किताबें ही लोगों द्वारा अधिकतर खरीदी जाती हैं, या फिर प्रतियोगी परीक्षाओं वाली किताबें। गंभीर किताबें- हमारे विचारों को उत्तेजित करने वाली या हमें विचारशील बनाने वाली किताबों की बिक्री यहां कम होती है। किस तरह की पुस्तकों वाले स्टॉल पर कितनी भीड़ होती है, यह देखकर कोई भी इसका अंदाजा लगा सकता है। हम यह क्यों नहीं सोचते, कि जिस समाज में विचारशीलता जगाने वाली किताबें पढ़ी जाएंगी उस समाज में मानव-विकास इतना धीमा क्यों होगा कि यह रफ्तार देश में सबसे कम मानी जाए? क्यों निरक्षरों की सबसे बड़ी आबादी इसी क्षेत्र में कायम है और क्यों देश के सिमटते संसाधनों को और तेजी से कम करने के लिए बच्चे पैदा करने की दर देश के किसी भी हिस्से से ज्यादा यहीं पाई जाती है?

उत्तर भारत को विकसित किए बिना संपूर्ण भारत की तरक्की पर हमेशा ग्रहण लगा रहेगा और उत्तर भारत की तरक्की के लिए अब एक-एक व्यक्ति तक गुणात्मक शिक्षा पहुंचाने के लिए युद्ध-स्तर पर काम करने में और देर नहीं की जानी चाहिए। यह शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों और बड़ों में स्वावलंबन की भावना जगाने के साथ-साथ उनमें मनुष्य होने का गर्व पैदा करे। आजादी के बाद हमने इस दिशा में इतनी ढिलाई बरती है कि अब यदि सामान्य से कई गुणा अधिक तेजी नहीं लाई गई, तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तर भारत के हिन्दी भाषी लोग संपूर्ण भारत के स्तर पर अपने को अलग-थलग, कटा हुआ महसूस करेंगे, जो देश की तरक्की, एकता और अखंडता के लिए घातक साबित होगा।

-सूरज प्रकाश सिंह, मुम्बई. शिक्षा: भारतीय संस्कृति और पुरातत्त्व से स्नातकोत्तर. पेशा: स्वतंत्र लेखन, अनुवाद कार्य एवं फोटोग्राफी.

2 comments:

अभय तिवारी said...

सही चिंताएं हैं!

अभय तिवारी said...

सही चिंताएं हैं!