साल बदला
बदली तारीख
दीवारों पर टंगे कैलेंडरों पर टंके
अंक बदले
पर नहीं बदली जिंदगी
सारी रात जागते
थिरकते-बहकते हुए
साल तुम्हें विदा!
2008 की दस्तक! एक चमकीली भोर
साल की पहली सुबह!तुमने उत्सव नहीं मनाया पर
तुम्हारे आंगन में चिड़ियों की चहचाहट यूं ही थी
साल की पहली सुबह
एक दस्तावेज है
शहर-महानगरों के शोर का
भागते-लटकते लोगों का
अगली शाम की रोटी के जुगाड़ में
सुबह से देर शाम
खुरदरी खाल वाले हाथों का या
उन बेघरों का
जिन्होंने सर्दियों से ठिठुरते हुए सारी रात जागकर गुजार दी।
उनका भी
जिन्होंने कभी नहीं कहा,‘झूठा है तुम्हारा उत्सव’।
आसमां उत्सव नहीं मनाता आज भी उसका रंग नीला है
नहीं मनाती नदियां उत्सव
आज भी लरजती है
अब भी मचलती है
पहाड़ नहीं मनाते उत्सव
हमेशा की तरह आज भी
हमारे कारनामों के गवाह हैं।
तो जानिए कैलेंडर की तारीख बदलने से बहुत कुछ नहीं बदल जाता!!
बहरहाल...
आइए मिलकर कामना करें
सभी को मिले उजाले की खुशबू
नदियों की मस्ती
पहाड़ों के हौसले
और मिले अपना-अपना आसमां।
सुमित सिंह
6 comments:
सुमित जब ब्लॉग की इस छोटी सी दुनिया में आ गया है तो बस बने रहने का प्रयास करना, खैर कविता सार्थकता से भरी है
स्वागत - आसमान के पहले बादल का - मनीष
हिन्दी चिट्ठजगत में स्वागत है।
स्वागत है सुमित
नए साल की शुभकामनाओं के साथ स्वागत है आपका बंधु!
नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत है ।
घुघूती बासूती
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