...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Thursday, January 10, 2008

आम आदमी की जिंदगी में खुशहाली का एक और पन्ना

टाटा समूह के चेयरमेन रतन टाटा ने आज विश्व ऑटोमोबाइल इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करवा लिया।

उनकी बहुप्रतीक्षित ‘लखटकिया’ कार आज लोगों के सामने आ गई। एक ऐसी कार जो कम से कम प्रदूषण और इंधन में ज्यादा दूर दौड़ सके। और जिसकी कीमत समाज के आम से आम लोगों की पहुंच में हो।
रतन टाटा का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था। भारत में अगर हर हाथ में मोबाइल की कल्पना पूरी होने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है तो अब जरूरत थी, बजट के मुताबिक, प्रदूषण मुक्त और सुरक्षित यात्रा की।

खुशी है कि अब समाज के ऐसे लोग जो भोजन, वस्त्र, आवास की समस्या से ऊपर नहीं उठ पाते, वे भी अपने परिवार के साथ एक ‘कार’ (जिन्हें अबतक सड़कों पर भागते हुए देखी थी) में बैठकर यात्रा करने का मजा ले सकेंगे।

अब कोई परिवार झमाझम बारिश में अपनी स्कूटर पर भींगने के लिए मजबूर नहीं होगा, अब उनकी जिंदगी में सुरक्षा का एहसास जुड़ेगा।

‘टाटा’ विजनरी रहे हैं। भारतीय किसानों के हाथों में कुदाल-फावड़े और सुदूर देहात के लोगों के पीने के लिए हैंड पम्प बनाने से लेकर, नमक खिलाने और अब सुरक्षित और प्रदूषण-मुक्त यात्रा करवाने तक, उन्होंने उन्नत, खुशहाल और टिकाऊ समाज के निर्माण की अहम जिम्मेदारी निभाई।

व्यक्तिगत तौर से कहूं तो ऐसे देश में जहां टाटा जैसे विचारक उद्योगपति रहते हों, उसका नागरिक होने में गर्व महसूस होता है।
सुमित सिंह

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