...सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना....
-अवतार सिंह संधू उर्फ़ पाश

Wednesday, May 20, 2009

जी भर कर रोया था प्रभाकरण

मां!
मैं पराजित नहीं होना चाहता
मुझे जीत हासिल न हो
पर मैं इन्हीं जंगलों, जानवरों और इस मिट्टी की खुशबू के बीच
रहना चाहता हूं
हमेशा-हमेशा के लिए...

मेरे साइनाइड निगलने के बाद
दुनिया भर में यह खबर फैल जाएगी कि
मेरा शव बरामद हो गया
और 30 साल से चल रहे खूनी संघर्ष पर विराम लग गया
मगर मुझे पता है मेरे जिंदा होने का एहसास
मनुष्य के गले में हमेशा के लिए अटका रहेगा।
मेरे नहीं होने के बाद भी मेरी अनजानी मौजूदगी से
वे बार-बार कांप उठेंगे
उनकी नींद में मैं बेचैनी पैदा करता रहूंगा..

मुझसे हुए कुछ गुनाह भी..
तुम्हारे विस्तृत आंचल को हासिल करने की लड़ाई में
बहुत कुछ हुआ ऐसा जो बेवजह था
अफसोस है
जो बेमकसद मारे गए
उनसे क्षमा!
पर तुम्हारी उजड़ी मांग की वह तस्वीर
मुझे अंदर तक झिंझोड़ डालती है

...उनकी बंदूकों की आवाजें काफी पास आ गई हैं...

एक बार मैं तुम्हारी गोद में सिर टिका कर
जी भर कर रोना चाहता हूं
इस बात के लिए नहीं कि मैं अब यहां नहीं होऊंगा
बल्कि इस बात के लिए कि तुम्हारा खोया तुम्हें लौटा न सका
मेरी चाची का अधजला चेहरा
अब्बा-काका-भाइयों की खून से सनी लाशें
भय से फैली चीखती उनकी आंखों की भयानक स्मृतियों के बीच
एक बार जी भर कर दिल से रो लेना चाहता हूं

मां!
मैं पागल नहीं
साम्राज्यवादी हत्यारा भी नहीं
बस अपनी पहचान के संकट का मारा
घर वापसी के सपने लिए दर-ब-दर भटकता
खुद की लड़ाई लड़ता एक पागल सिपाही..
कई बार लगा मुझे दुनिया मेरी पीड़ा कभी समझ नहीं पाएगी
मेरे आंदोलन से किसी को इत्तफाक नहीं
इसलिए मैने उनसे कभी समझौता नहीं किया

मैं इराक नहीं था
अफगानिस्तान-पाकिस्तान और इजराइल भी नहीं
जिनकी जमीनों पर कइयों के फायदों के बीच बिखरे पड़े थे
यह संघर्ष मेरा अपना है

मुझे दुनिया का सर्वाधिक खतरनाक आतंकवादी घोषित किया गया
पर आतंकवादी तो वे हैं
जो दूसरों की पहचान के संकट के बीज बोते हैं
मैं तो मारा-मारा फिरता रहा
मुझसे मेरा घर हथिया लिया मेरी जवानी छीन ली..
वे हैं आतंकवादी
इसलिए मैं अब किसी के लिए नहीं बदलूंगा
नहीं रुकूंगा...ठहरूंगा नहीं
मैं बस पराजित नहीं होना चाहता
अपने पीछे एक चिंगारी छोड़ जाऊंगा जो दूसरों के मशाल जलाने के काम आती रहेगी

धमाकों की आवाज अब काफी करीब आ चुकी है...

मेरी जिंदगी छीन लेने के मंसूबे से चले हैं वे
पर मैं जानता हूं
उन्हें इसका हक नहीं
सांप-बिच्छुओं, बनैले जानवरों, धूप-बरसात और तूफानों के बीच
यह जिंदगी मेरा अपना चयन था
इसे खत्म भी मैं ही करूंगा
आखिरी बार अपनी गोद में सिर टिकाने की जगह दे दे|

मां!
कायर नहीं तेरा प्रभाकरण!
उसके पीछे छूटी आग दुनिया के हर कोने में हमेशा के लिए जलती रहेगी।
उसकी कब्र पर खिलेंगे लाल गुलाब के फूल!!

(...दुनिया को यही खबर मिल पाई कि श्रीलंकाई फौज को प्रभाकरण और उसके बेटे की लाश मिली। पर शायद उसने साइनाइड की गोली निगल ली थी...। )
सुमित सिंह

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