
सावन की बारिश की वे बूंदें
जो पहली बार मुझे गीला कर गईं
गांव की ढलती वो बैंगनी शाम
जिसे पहली बार मैंने खिड़की से अंदर आते देखा
हवा के वे कोमल झौंके
जो पहली बार खुशबुओं से सने मिले
हल्की ओस में भींगी शरद की वो शर्मीली चांदनी
जिसमें पहली बार किसी के जुल्फ लहराए
जगमग सितारों से भरी वो रात
जिसमें पहली बार किसी के इंतजार का ख्याल आया मुझे
मंदिर के घंटे का वह स्वर
जिसमें पहली बार ‘नंजू’ अमर हुईं
लता के गीत के वे बोल
जो पहली बार मेरे दिल में उतरे
मेरी ज़िंदगी के वे दिन वो लम्हे
जो पहली बार मुझे तिलस्मी धुंध में लिपटे दिखाई पड़े
बिना प्लास्टर मेरा वह पुराना मकान
जो पहली बार मुझे ताजमहल लगा
मेरी खिड़की के सामने खड़ा
झूमता युकेलिप्टस का वह ऊंचा पेड़
जो पहली बार मेरे पवित्र ‘किशोर’ का हमराज बना...
एक दुनिया थी जिसमें पहली बार मुझे मेरा स्वप्नलोक मिला!
एक ज़िंदगी थी जिसमें पहली बार मुझे सांसें मिलीं।
एक घनी काली रात के बाद मुझे अचानक
रहस्यों को भेदने की जरूरत महसूस हुई
बस यहीं से मेरी बरबादी शुरू हुई
यहीं मेरे स्वप्नलोक ने मुझे बाहर निकाल दिया!!
(विशाल अहाते वाले हमारे पुराने मकान में सफेद साड़ियों वाली हमारी दादी, जिन्हें प्यार से हम नंजू पुकारते...जिन्होंने हमारे बचपन के कोमल एहसास को सींचा...।)
सुमित सिंह